मानव में क्रांति से विश्व में शांति
बज़्म को अपनी इंनायत की रौशनी देकर,
एक एक शख्स का किरदार संवारा उसने|
काफिले इश्को मोहब्बत के चले उसके सबब ,
काफिलों वालों को मंजिल पे उतारा उसने|
हाँ! यही वोह मल्लाह है जिसने
लहर 'ब्रहमज्ञान ' की हर खुदी में दोड़ाई है|
किसी महफ़िल का क्या ज़िक्र करूँ,
आज संसार में सावन की घटा छाई है|
divyadrishti
Friday, December 17, 2010
Monday, December 13, 2010
यह कैसी घड़ी है
विश्व विनाश की कगार पर खड़ा है
और सबको अपनी अपनी पड़ी है
यह कैसी मुश्किल की घड़ी है!
स्वार्थ में अँधा हो चले जा रहा है
बस अपने लिए तू जिए जा रहा है
पितृ -ऋण,मातरी-ऋण,पत्नी-ऋण,पुत्र -ऋण
जाने कितने ही ऋणों को चुकाया है तूने
पर क्यूँ इस धरा ऋण को समझा न तूने
घुट्ती मानवता अधर में खड़ी है
यह कैसी मुश्किल की घड़ी है!
यह तूफ़ान सबको मिटा देगा आकर
बारूद के धुएं सब जला देंगे छा कर
विश्व को बचाने आये हैं सतगुरु
देख ज़रा संकुचित दायरों से निकलकर
घरोंदों से निकल देख राहों में चलकर
यह परमार्थ का मार्ग है बड़ा आनंदकर
जो सुख मिलेगा दूसरों को सुख देकर
वोह सुख न मिलेगा घरोंदों में रहकर!
विश्व विनाश की कगार पर खड़ा है
और सबको अपनी अपनी पड़ी है
यह कैसी मुश्किल की घड़ी है!
स्वार्थ में अँधा हो चले जा रहा है
बस अपने लिए तू जिए जा रहा है
पितृ -ऋण,मातरी-ऋण,पत्नी-ऋण,पुत्र -ऋण
जाने कितने ही ऋणों को चुकाया है तूने
पर क्यूँ इस धरा ऋण को समझा न तूने
घुट्ती मानवता अधर में खड़ी है
यह कैसी मुश्किल की घड़ी है!
यह तूफ़ान सबको मिटा देगा आकर
बारूद के धुएं सब जला देंगे छा कर
विश्व को बचाने आये हैं सतगुरु
देख ज़रा संकुचित दायरों से निकलकर
घरोंदों से निकल देख राहों में चलकर
यह परमार्थ का मार्ग है बड़ा आनंदकर
जो सुख मिलेगा दूसरों को सुख देकर
वोह सुख न मिलेगा घरोंदों में रहकर!
Saturday, December 11, 2010
खरी कसौटी राम की काँचा टिकै न कोय
by Gurpreet Singh on Monday, November 29, 2010 at 4:40pm
खरी कसौटी राम की काँचा टिकै न कोय
गुरु खरी कसौटी के आधार पर शिष्य को परखते हैं ,कहीं मेरे शिष्य का शिष्यत्व कच्चा तो नहीं है | ठीक एक कुम्हार की तरह ! जब कुम्हार कोई घडा बनाता है ,तो उसे बार-बार बजाकर भी देखता है - ' टन!टन!' वह परखता है कि कहीं मेरा घड़ा कच्चा तो नहीं रह गया | इस में कोई खोट तो नहीं है |
ठीक इसी प्रकार गुरु भी अपने शिष्य को परीक्षाओं के द्वारा ठोक-बजाकर देखते हैं | शिष्य के विश्वास ,प्रेम,धेर्य ,समर्पण,त्याग को परखते हैं|वे देखते हैं कि शिष्य कि इन भूषनो में कहीं कोई दूषण तो नहीं ! कहीं आंह की हलकी सी भी कालिमा तो इसके चित पर नहीं छाई हुई ? यह अपनी मन-मति को बिसारकर,पूर्णता समर्पित हो चूका है क्या ?
क्यों कि जब तक स्वर्ण में मिटटी का अंश मात्र भी है,उससे आभूषण नहीं गढ़े जा सकते | मैले दागदार वस्त्रों पर कभी रंग नहीं चढ़ता | उसी तरह,जब तक शिष्य में जरा सा भी अहम्,स्वार्थ,अविश्वास या और कोई दुर्गुण है,तब तक वह अध्यात्म के शिखरों को नहीं छू सकता | उसकी जीवन - सरिता परमात्म रुपी सागर में नहीं समां सकती |
यही कारण है कि गुरु समय समय पर शिष्यों की परीक्षाएं लेते हैं | कठोर न होते हुए भी कठोर दिखने की लीला करते हैं | कभी हमें कठिन आज्ञें देते हैं ,तो कभी हमारे आसपास प्रतिकूल परिस्थियाँ पैदा करते हैं | क्यों कि अनुकूल परिस्थियाँ में हर कोई शिष्य होने का दावा करता है | जब सब कुछ ठीक-ठाक चल रहा होता है,तो हर कोई गुरु-चरणों में श्रद्धा-विश्वास के फूल आर्पित करता है |
कौन सच्चा प्रेमी है ? इस की पहचान तो विकट परिस्थियाँ में ही होती है | क्यों कि जरा-सी विरोधी व् प्रतिकूल परिस्थिया आई नहीं कि हमारा सारा स्नेह ,श्रद्धा और विश्वास बिखरने लगता है |शिष्त्यव डगमगाने लगता है |
MISSION BHARAT
दूर भगाने को अज्ञान ,
सबको देने ब्रह्म का ज्ञान|
पुनर्धरम स्थापन हेतु
मानव का करने कल्याण ||
मिशन भारत नव निर्माण |
दिव्य ज्योति जाग्रति संसथान||
Friday, December 10, 2010
GRACE OF GURU
the grace of the guru is like an ocean,if one comes with a cup,he will only get a cupful.it is no use complaining about ocean.bigger the vassel the more one will be able to carry.it is entirely upto him.......
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