Saturday, December 11, 2010

खरी कसौटी राम की काँचा टिकै न कोय

by Gurpreet Singh on Monday, November 29, 2010 at 4:40pm
खरी कसौटी  राम की काँचा टिकै न कोय 
गुरु खरी कसौटी  के आधार पर शिष्य को परखते हैं ,कहीं मेरे शिष्य का  शिष्यत्व कच्चा तो नहीं है | ठीक एक कुम्हार की तरह ! जब कुम्हार कोई घडा बनाता  है ,तो उसे बार-बार बजाकर भी देखता है - ' टन!टन!' वह परखता है कि कहीं मेरा घड़ा कच्चा तो नहीं रह गया | इस में कोई खोट तो नहीं है |
ठीक इसी प्रकार गुरु भी अपने शिष्य को परीक्षाओं  के द्वारा ठोक-बजाकर देखते हैं | शिष्य के विश्वास ,प्रेम,धेर्य ,समर्पण,त्याग को परखते हैं|वे देखते हैं कि शिष्य कि इन भूषनो में कहीं कोई दूषण तो नहीं ! कहीं आंह की हलकी सी भी कालिमा तो इसके चित पर नहीं छाई हुई ? यह अपनी मन-मति को बिसारकर,पूर्णता समर्पित हो चूका है क्या ?
क्यों कि जब तक स्वर्ण में  मिटटी का अंश मात्र भी है,उससे आभूषण नहीं गढ़े  जा सकते | मैले दागदार वस्त्रों पर कभी रंग नहीं चढ़ता | उसी तरह,जब तक शिष्य में जरा सा भी अहम्,स्वार्थ,अविश्वास या और कोई  दुर्गुण है,तब तक वह अध्यात्म के  शिखरों को नहीं छू सकता | उसकी जीवन - सरिता परमात्म रुपी सागर में नहीं समां सकती |
यही कारण है कि गुरु समय समय पर शिष्यों की  परीक्षाएं लेते  हैं | कठोर न होते हुए भी कठोर दिखने की लीला करते हैं | कभी हमें कठिन आज्ञें  देते हैं ,तो कभी हमारे आसपास प्रतिकूल परिस्थियाँ पैदा करते हैं | क्यों कि अनुकूल परिस्थियाँ   में हर कोई शिष्य होने का दावा करता  है | जब सब कुछ ठीक-ठाक चल रहा होता है,तो हर कोई  गुरु-चरणों  में श्रद्धा-विश्वास के फूल आर्पित करता है |
कौन सच्चा प्रेमी है ? इस की पहचान तो विकट परिस्थियाँ में  ही होती है | क्यों कि जरा-सी विरोधी व् प्रतिकूल परिस्थिया आई नहीं कि हमारा सारा स्नेह ,श्रद्धा और विश्वास बिखरने लगता है |शिष्त्यव डगमगाने लगता है |

No comments:

Post a Comment